ब्यूरो चीफ- सिद्धार्थ श्रीवास्तव अंबेडकर नगर
मज़दूरों के हक़-अधिकारों पर हमला जारी रखते हुए मोदी सरकार अब उनके बुनियादी जनवादी श्रम अधिकार भी छीन लेने पर आतुर हो रही है इसी सिलसिले में सरकार ने औद्योगिक सम्बन्ध संहिता विधेयक 2020 लोकसभा में पेश किया है। उक्त बातें बीकेयमपी पार्टी के मित्रसेन ने सिंघलपट्टी में पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के बीच एक बैठक में कही । मालूम हो भारत की क्रांतिकारी मजदूर पार्टी की एक बैठक सिंघल पट्टी कार्यालय पर सम्पन्न हुई जिसमें भाजपा सरकार द्वारा औद्योगिक इकाई से समन्धित मजदूरों के विरुद्ध सदन में पेश विधेयक की निन्दा करते हुए इसे मजदूरों के हक पर डाका डालने वाला विधेयक बताया । विधेयक के अनुसार अब कोई भी औद्योगिक प्रतिष्ठान जहाँ 300 से कम मज़दूर कार्यरत है, वहाँ मज़दूरों को काम से निकालने के लिए कोई कानूनी बाधा आड़े नहीं आयेगी और बिना किसी स्पष्टीकरण के फैक्ट्री मालिक कभी भी 'हायर एण्ड फायर' कर सकता है पहले यह सीमा 100 मज़दूरों वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान पर लागू होती था। मित्रसेन ने कहा कि इससे रोज़गार की सुरक्षा ख़त्म होगी और इसका फायदा सीधे फैक्ट्री मालिकों को मिलेगा जो अपनी शर्त पर और कम से कम मज़दूरी पर मज़दूरों से ग़ुलामी करवाने को आज़ाद होंगे।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के विन्द्रेश ने कहा कि मज़दूरों के हड़ताल के बुनियादी जनवादी अधिकार को भी छीनने की तैयारी इस विधेयक में की गयी है। इस विधेयक के अनुसार अब हड़ताल करने के लिए मज़दूरों को कम से कम 60 दिन पहले नोटिस देना होगा जो सभी औद्योगिक मज़दूर पर लागू होगा। पहले जनोपयोगी आवश्यक सेवाओं जैसे कि बिजली, पानी, टेलीफोन, प्राकृतिक गैस आदि पर ही यह कानून लागू था और इसके लिए भी दो हफ्ते पहले नोटिस देने की आवश्यकता थी।