बेचैनी सोने न दे


बेचैनी सोने भी न दे


हँसना तो दूर रोने न दे


 


जहाँ आस वहीं प्रयास


विफल दाँव चलने न दे


 


मुरझाया है गुलिस्तान


फूलों को महकने न दे


 


जिंदगी जैसे चलती रेल


ठहराव पर रुकने न दे


 


लगा के बाँध,रोके नीर


चलती धारा बहने न दे


 


अपनों से करते संकोच


गैरो तक कोई जाने न दे


 


जहाँ संबंध वहाँ विच्छेद


रिश्ते कोई बंधने न दे


 


श्याम रैना गम ए सौगात


पल भर भी हँसने न दे


 


छाई काली घटा घनघोर


प्यासी है भू,बरसने न दे


 


मनसीरत के टूटे ख्वाब


नींद में भी बोलने न दे


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सुखविंद्र सिंह मनसीरत


खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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