डा. ज्ञानवती दीक्षित
आज कंगना की बात सुनकर मुझे सीतापुर का स्पर्श होटल याद आया। मैं कोई नेता नहीं।मेरा राजनीति से कोई लेना देना नहीं।पर जब मैं स्पर्श होटल के सामने से गुजरती थी, मुझे बहुत अच्छा लगता था कि हमारे सीतापुर में अच्छी इमारतें बन रही हैं। राजनीति के द्वेष ने उसे जमींदोज कर दिया।आज मैं उधर से निकलती हूं मेरा दिल दुख जाता है। मैं नहीं जानती ,वह किसका था और क्यों तोड़ दिया गया।
मैं तो पेड़ तक छंटवाती हूं,तो माली से कहती हूं किसी चिड़िया का घोंसला उजड़ना नहीं चाहिए।पेड़ अच्छा लगे या न लगे। मेरे घर का शो भले बिगड़ जाए।इन इंसानों को यह नहीं लगता कि बदला लेने के लिए किसी का घर तोड़ रहे हैं,किसी को उजाड़ रहे हैं, कहीं उनको इसका भी जवाब देना होगा।
इस देश में सबका अधिकार है।बदला लेने के लिए नेता बाबर की नीति अपनाएंगे,तो समय उनका भी घमंड ध्वस्त करेगा। मैं अमृतलाल नागर का सात घूंघट वाला मुखड़ा पढ़ रही थी ।उसका सार वही है, जो मैंने लिखा।
"चाकी कहे कुम्हार से,तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आयेगा , मैं रौंदूगी तोय।।"