श्रष्टि के सर्जनहार, !!! कोई उसे खुदा कहेता है कोई भगवान कहेता है, कोई शिव शक्ति कहेता है तो कोई कृष्ण की लीला कहेता है, सभी भगवान
एक शब्द से जुड़े हुए है.. #प्रकृति, प्रकृति ने ही श्रुष्टि का सृजन किया है ओर जब जब मानव प्रकृति के सॄजन पर संदेह करेगा, उनके सॄजन मे हस्तक्षेप करेगा, खुद सर्जनहार बनने का प्रयास करेगा तब तब प्रकृति मानव को अपनी सीमाओ का आभास कराएगी उनकी हद से रूबरू कराएगी..
जीवन मृत्यु मे मूरत नहीं
कर्म मे शुभमूरत क्यों?
घड़ी शुभ होती सत्कर्म की
फिर अशुभ घड़ी क्यों?
प्रकृति विवश नहीं जब
इन्सान अंधश्रद्धा मे विवश क्यों?
जब दिया नसीब ने बेहिसाब
तो देने मे हिसाब क्यों?
आँखों से बहते बेहिसाब
आंशू की कीमत कुछ नहीं
फिर गली गली बीकता पानी क्यों??
ठहर जा इन्सान तू
बहोत आगे निकलगया
श्रुष्टि के सृजन मे भी
शक का बीज बो दिया
पानी को पानी न रहने दिया
मैसर को अमृत बनाया क्यों?
प्रकृति को फिरसे एकबार
प्रकोपित बना दिया
फिर अब थर थर कांपता क्यों?
मौत का इतना खौफ है
फिर खुदा बनने चला क्यों??
फिर खुदा बनने चला क्यों?
अल्पा मेहता