एक संबंध जो सिर्फ सात फेरों से जुड़ता है !
इसके बाद यह नई राह को मुड़ता है!
नई कल्पनाओ व उमंगों के साथ
खुली मुट्ठी ले जो ससुराल की ओर चलती है !
हो न जाय कुछ गलत इसलिए सम्भल कर पाव रखती है
दो प्यार जिससे वो मुट्ठी बंद कर ले
आहिस्ता...कहीं पानी की तरह न बह ले
कई जिम्मेदारियों के साथ वो घर चलाती है
नए चेहरों के साथ नया संबंध बनाती है
सबके प्रति कर्तव्यों को निभाती जाती है
नई जिंदगी उसे सभ्यता का पाठ पढ़ाती जाती है
फिर भी........
इक छोटा बीज एक दिन में कैसे पेड़ बन जाएगा ?
लगेगा समय उसे भी..कुछ दिन मे सब ठीक हो जाएगा
हल नहीं करना चाहता कोई यह सवाल
मचाते है पलभर मे सब बवाल
पति भी पत्नी से कई उम्मीदे बाँध लेता है
कभी वो भी मालिक सा व्यावहार कर लेता है
गलतियां नई बहू की गिनाने लगते है लोग
येसे मे पति भी माँ बाप की लेता है ओर
ससुराल में सिर्फ पति का सहारा होता है
बीच मझधार मे जैसे नाव का सहारा होता है
पार लगाने का जब एक ही आसरा होता है
यदि वो भी न मिले तो क्या होता है
पास होकर भी दूर किनारा होता है
दुल्हन नए संसार मे सब कुछ नया पाती है
अपने साथ वो कुछ उम्मीद ही तो उसको नई दहलीज पार कराती है
सास रूप मे" माँ "ससुर रूप मे "पिता" की याद दिलाती है
एक बच्चा भी जन्म के साथ भी कुछ ऐसा ही समा होता है
उसे नयेपन का एहसास होने न दीजिए
अपने ऊपर से उसका विश्वास खोने न दीजिए
बहू रूप त्याग बेटी बनाइऐ उसको
अंतर्मन से बारीकियां समझाइए उसको
होगा न कोई जो इस आवाज को समझता न होगा
सुखद जीवन का राज जानता न होगा !
संबंध विश्वास और प्यार से जुड़ते है
सब एक ही दहलीज को मुड़ते है
यह दहलीज है आदर व सम्मान की
जिसमें जरूरत है कर्तव्यों की ओर रुझान की
श्वेता कनौजिया
प्रधानाध्यापिका
गौतमबुद्ध नगर