"हिम-खोह में छुपल बा
अनवरत निरन्तर बहता
कल-कल ध्वनि सँग त
उ धरती के माथ चूमता
एको बुनी अमृत-जस त
केहू के तबले ना भेंटायी
मन के पवितर बनी ना त
उ लउकी ,आ ललचायी
कहल जाला शीव-जटा से
इ प्रवाह त निकसल बा
आ गवे-गवे सम्पूर्ण धरा के
अपना में त समेटले बा
जीवनदायिनी मातु इ हवि
सगरे बात इ पसरल बा
हे माँ गंगे,अमृत बरसा द
जीवन पापी इ भइल बा
हहरत-घहरत दूध-धार त
स्वर्ग से उतरल आइल बा
हे माँ कर अब दया पुत्र पर
करबद्ध त खाड़ भइल बा
पाप-पुण्य ना जानी हमनी
हरहर महादेव बस कही ला
ए जग जननी पतित पावनी
निर्मल काया बस अब करीला,,,,,,
★★★★★★★
डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी