ज़िंदगी के बहुमूल्य पल बन जाते हैं लम्हें
ज़िंदगी का गुजरा कल बन जाते हैं लम्हें
यादों के खजाने से निकल-निकल कर आते हैं लम्हें
गीली मिट्टी की सौंधी खूशबू से महक जाते हैं लम्हें
पत्तों पर ओस की बूँद से ढुलक जाते हैं लम्हें
क्यूंकर सावन की पहली बारिश से बरस जाते हैं लम्हें
आंखों में फिर धुंआ-धुंआ से छलक जाते हैं लम्हें
जब कभी वक़्त की कसौटी पर खरे उतर जाते हैं
यादगारी के सबक छोड़ जाते हैं लम्हें
मोम की मानिंद, कैसे पिघल-पिघल जाते हैं
ढलती रेत से, हाथों से फिसल जाते हैं लम्हें
किताब के सूखे फूल-सी धुंधली यादें बन जाते हैं
तब सफर में हमसफर सा साथ दे जाते हैं लम्हें
जब छलक कर नम आंखों का जल बन जाते हैं
तब नासूरी का लम्हा-लम्हा दर्द दे जाते हैं लम्हें
कभी शब्दों का, कभी लफ़्जों का खेल, खेल जाते हैं
कभी कलम के फूल, बन अंगार ढह जाते हैं लम्हें
मीठी-मीठी बातों में चुपके सौ पहरे बन जाते हैं
फिर रूह को छू कर अनकहे ही गुजर जाते हैं लम्हें
जब ठहरे पानी में पत्थरों से हलचल कर जाते हैं
तब आईने को तकते एक इतिहास बन जाते हैं लम्हें
ज़िंदगी के बहुमूल्य पल बन जाते हैं लम्हें
ज़िंदगी का गुजरा कल बन जाते हैं लम्हें..।।
डाॅ० अनीता शाही सिंह
प्रयागराज