लिखूँ हृदय की कलम से , गाथा नित नवभोर।
पाकर प्रातः अरुणिमा , कर्म मग्न चहुँओर।।१।।
नव ऊर्जा नवजोश से , कर्ययोग पथ यान।
गढ़ें नये सोपान को , पाये शुभ अरमान।।२।।
नवांकुर सिंचन सदा , किसलय कुसमित फूल।
सम्वर्द्धित शिक्षित बने , सफल राष्ट्र अनुकूल।।३।।
तजें सदा प्रतिकूल पथ , बढ़े मार्ग सत्संग।
ध्यान सदा उद्देश्य में , हो जीवन नवरंग।।४।।
रहें लीन सत्कर्म में , खोजें मत परदोष।
धीर सबल गंभीर हों , करें नहीं मन रोष।।५।।
लखि निकुंज नित मन युवा,संस्कार बिन आज।
उद्धत मद वाचाल नित , आहत देश समाज।।६।।
युवाशक्ति आधार जग ,निर्माणक निज देश।
शील त्याग गुण कर्म से , जीते दिल परिवेश।।७।।
चढ़े युवा उन्नति शिखर , बढ़े राष्ट्र सम्मान।
नव प्रभात सुख शान्ति दे , नव जीवन वरदान।।८।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली