जंगल पर्वत मरुस्थली में
दुर्गम पथ आसान बनाया।
सागर पर भी सेतु बनाकर
पौरुष की पहचान कराया।।
जंगल में मंगल कर डाला
मापी पर्वत की ऊँचाई।
अंधकार में दीप जलाया
नदियों की भी थाह लगाई।।
सागर में जलपोत उतारे
अम्बर में भी यान उड़ाया।
अंतरिक्ष की भी यात्रा की
चन्दा मामा तक हो आया।।
रेल गाड़ियाँ माल गाड़ियाँ
भाँति भाँति की कार बनाई।
एअर टैक्सी में बैठाकर
अम्बर की भी सैर कराई।।
आत्म सुरक्षा के हित आयुध
अति सुन्दर था करतब सारा
किन्तु वायरस ,ऐटम बम से
मानव आज बना बेचारा।।
विजय शंकर मिश्र भास्कर