छोड़ो दुनियाँदारी....


मन ही बन्दर, मन ही मदारी,
नाच  रहे हैं  सब  संसारी!
मोह नही छूट रहा है सबका,
नित  नई  मिल रही है  लाचारी!


अजब माया नगरी में फँसकर,
गज़ब खेलों की खेलें पारी!
दृश्यमान  जग सारा  है झूठा,
फिर भी झूठे यार से सच्ची यारी!


कुछ नही जाना है संग अपने,
शुभ कर्मों की करो तैयारी!
जिसने भी जाना, उसने ये माना,
करके सतकर्म तक़दीर सँवारी!


जो नही  जागा, है वक्त गँवाया,
उसकी आत्मा  तड़पे बेचारी!
काश भरम में डूबे ना होते,
तो कुछ तो हस्ती  होती तुम्हारी!


अभी भी  वक्त है  जाग जाओ,
भरम की छोड़ो दुनियाँदारी!
इक-इक पल है बड़ा अनमोल,
शुभकर्मों की  बीत ना जाए पारी!


नाम- मंजू श्रीवास्तव
पता- कानपुर (उत्तर प्रदेश)
स्वरचित रचना-


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