अस मन जनलीं
कि भोले बानी भीतरां
बनाई लिहलीं
अपने मन के मंदिरवा बनाई लिहलीं।
पियलें गरल भोले
होइके सरल हो
जताई लेहलीं
अपने भोले जी से नेहिया जताई लिहलीं।
मन रहिहें जो कांच
एहवां टिकिहें न सांच
तपाई लेहलीं
अपने भोले जी के जोग में तपाई लिहलीं।
नाहीं हे अभाव में
नाहीं हे प्रभाव में
उतारि लेहलीं
अपना भोले के स्वभाव में उतारि लेहलीं।
करम क वेग से
धरम क डेग से
पुकारि लेहलीं
अपना भोले जी के मन से पुकारि लेहलीं।
#आकृतिविज्ञा
#निर्गुणसगुणहरिहरशिवकजरी
#व्यष्टिसमष्टि