"तुम
जाने को तो
चले गए
पर गए कहाँ
यह तो बोलो ?
वाणी के
शब्दों में
हृदय के
झंकार में
नयनों के
स्वप्न में
गए कहाँ तुम
कह लो कुछ
या सुन लूँ मैं
कुछ न रहा
अब तो शेष
तन तो बस
बहाना है
किसे किस विध
जाना है
तुमसे मिलने आऊँगी
चल तेरे
पदचिन्हों पर
और छुपा ले जाऊँगी
अपने अंचल
तेरी मिट्टी
घुला हो जो
सँग अश्कों के
तेरी पावन स्मृति
मैं चलूँगी
तेरे चिन्हों पर
ले मंजूषा की
अभिव्यक्ति
मैं चलूँगी
सँग तेरे चलूँगी
हाँ, चलूँगी।"
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© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
तुम