मतलब का है सब संसार
नहीं है इसका पारावार
तृष्णा है मृगमरीचिका है
इस पर टिका है,सब आधार
कोई बिना मतलब के ,पानी तक नपूछें
स्वारथ के सब वशी भूत
आगे कुछ भी न सूझे
मतलब से ही चलता
इस जग का कारोबार
गर हो,मतलब,गधे को,
बाप बना लें ,मतलब के
खातिर,पैरों को सिर पे लगा लें
मतलब से ही चलता अब तो
घर परिवार,
कोई किसी का नहीं है यहां पर
ईश्वर का नाम मतलब से लेते,
जहां पर ,काम बन जाने पर
मालिक को भुला हैं देते जब तक
मतलब होता तब तक ही हैं रोते
मतलब से ही यारी औ,मतलब का
ही कारोबार,
संतोषी -कानपुर