सोनवा चिरैय्या कबो कहि जात हिन्दुस्तान,
मुल लागल हमहूँ का सच्चै कहि जाता था।।
यूपी म्है सोनभद्र बाटै इक जिला जौन,
सोन नदी तट जँह बाल हरषाता था ।।
वहीं पै पहाडी़ जौन प्रकृति मा खूबसूरत,
शिव नाम कही जात सोना ना देखाता था।।
भाखै कवि चंचल सुनौ इक अजुग्य बात,
नाहक ही सोनभद्र नाही ही कहाता था।।1।।
हिन्द केरे खोजी दल खोजि रहे रातौ दिन,
मुला अन्दाज वनकै रहि रहि भरमाता था।।
आजु मैने सुना जौन बतावैं पत्रकार बन्धु,
देखि देखि चित्र जौन मन ना अघाता था।। सोनवै कै खान छिपी छिपी है अथाह जौन,
सोने कै चिरैय्या हिन्द झूठै ना कहाता था।। भाखै कवि चंचल वाही खोलि दीनो भोलेनाथ,
हिन्द कै गरीबी कैसै ईश देखि जाता था।।2।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल
ओमनगर, सुलतानपुर, यूपी।। 9125519009 ।।