क्या लिया तुमसे
नहीं जानती,
पर अब तक कर्ज
में डूबी हुई हूं,
बहुत मुश्किल है
लोगों को समझना,
पर शायद अब
महसूस कर रही हूं
समझ रही हूं,
कैसे हैं लोग
दूसरो के मान सम्मान
को पल भर में
झटक देते हैं,
क्या उन्हें
तकलीफ नहीं होती,
पर हर कोई
आप जैसे की
तरह नहीं होता,
पर मुझे
फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि वो आपके
कर्म है,
और ये मेरे बस।
मैंने सीखा है अपने
बड़ों से वो ये,
तुम्हें कष्ट मिले
इसकी चिंता मत करो
हां सामने वाला,
दुखी नहीं होना चाहिए।
बात बहुत जरा सी है
मुझे दुःख होता है
तकलीफ भी होती है
आंसू भी आ जाते हैं,
पर एक सवाल
हमेशा में
उभरता है मुझे सही
नीति अपनानी है
देखा देखी नहीं
करनी है ,
शायद इसीलिए
आज तक सभंल
रही हूं और
सबको समझने
की कोशिश भी,
कर रही हूं।
जिंदगी हमारे
पास कितने ,
दिन के लिए आई है
हम नहीं जानते,
इन चार दिनों में
हंस कर चले
और एक कुछ नहीं,
तो हम अपना,
एक मुकाम
बना कर चले,
सभी खुश रहे
मस्त रहे🙏
स्वरचित पूनम दुबे वीणा अम्बिकापुर छत्तीसगढ़🍃🙏✍✍
[6/25, 9:01 AM] मजरे: 🍃🙏🍃
गुस्ताखियां
रहता इंतजार है
क्यूं बार -बार
जानता है दिल
है नहीं एतबार,
प्रेम की भावना
अंधी सी दौड़
खेल बना दिया
जज़्बातों की फरियाद
उठ गया भरोसा
नहीं है एतबार,
दिल बहल जाये
इसका है इंतजाम
झूठ है बहुत सही
सामने आ जाती है
एक बार नहीं कई बार
खुलासा कर जाती है
धोखा है हर बार
नहीं एतबार,
हो गई बिकाऊ
दुनिया की हर चीज
दिल बिका तो क्या हुआ
अब गई वो रीत
नहीं अब खुमार
नहीं है एतबार,
कैसे दिन बदले हैं
मौसम गये बदल
हालात भी समझे जरा
हुआ ये सब क्यूं
कैसे मजबूर है
नहीं है अब आसार
नहीं है एतबार,
घर में फंसे हैं
चार दिन की जिन्दगी
फिर हम अकड़े हैं
हंसिए मुस्कुराइए
दिन बहुत है कम
सामना हो प्यार से
यही सुखद है पल
बस इसी पर है अपना
अख्तियार
नहीं है एतबार।
स्वरचित
पूनम दुबे वीणा
अम्बिकापुर छत्तीसगढ़🙏✍✍💞