मेरी साहित्य मार्गदर्शिका मृदुला दीदी
नीरज कुमार सिंह
2019 की ही बात है ,शायद अक्टूबर महीने का 12तारीख रहा होगा ,जब मुझे पहली बार किसी ऑनलाईन प्रतियोगिता में मुझे एक प्रमाण पत्र मिला था .
फेसबुक के माध्यम से भी साहित्य प्रतिस्पर्धा होती इसकी तो मुझे कोई जानकारी ही नही थी।
सन् 2019 के जुलाई में ही मुझे पता चला कि कोई "हिंदी प्रतिलिपि" एप है ,उसके बारे में पता चलते ही मैंने बहुत लोगों से पूछा की मोबाइल में हिंदी टाइपिंग , कैसे करते हैं.तब
मेरे दोस्तो ने मुझे सहायता किए और बताए की ,हिंदी टाइपिंग कैसे करते हैं, तो फिर क्या था, मैंने भी एक कहानी लिख दिया जो कई वर्षो मेंरे मन में एक विचार रूप में स्थित थी, उसको टाइप की और उसे नाम दिया था , "नरपशु"
उस कहानी को मैंने" हिंदी प्रतिलिपि" एप प्रेषित कर दिया अब इसी कहानी को कम से कम 48लेखकों ने पढ़े और कमेंट भी आए, कमेंट कुछ अच्छे और कुछ सुझाव केक्रप में मिले थे,
सब एक से बढ़कर एक लेखक लोग थे ,मुझे बहुत खुशी हुई, फिर उसी "हिंदी प्रतिलिपी" में से ही एक लेखिका मिली थी, जिनका नाम "मृदुला "जी था
वो गोरखपुर की थी, उनको मेरी पहली कहानी "नरपशु" बहुत अच्छी लगी थी, हलांकि बहुत अच्छी व्याकरण से लिखावट तो नहीं थी, लेकिन मैंने प्रसन्नता पूर्वक प्रेषित कर दिया था ।प्रतिलिपि पर जिसे रिस्पांस अच्छे मिले थे ।शायद यही देख मृदुला दीदी को लगा इस बच्चे को मदद करनी चाहिए और फिर क्या मृदुला दीदी मुझे अपना भाई
मान ली वो मुझे सहयोग करने लगी थीं, उन्ही की बदौलत मुझे पता चला "वाट्स एप" और फेसबुक पर भी प्रतिस्पर्धा होता है ,उन्होंने मुझे बहुत सहयोग किया उन्होंने अपना
बहुमूल्य समय लगाकर मेरे कहानी के अंदर के व्ययाकरण विकृति को सुधारा, फिर मै मृदुला दीदी से पूछा दीदी क्या आपकी रचनाओं की जैसे मेरे
भी लिखे लेख व कहानी कभी
जिंदगी में किसी भी पेपर में प्रकाशित हो
सकते हैं क्या ? इसपर मृदुला दीदी बोली ,
! नीरज तुम इतना अच्छा तो लिखता हो,
बस भाषा सुधार करने की जरूरत है तुम्हे ,तुम्हारे रचनाओं में तो बहुत सुंदर भाव होते हैं, बिलकुल प्रकाशित होंगी, चिंता ना करो नीरज, आपकी रचनाएं जरूर प्रकाशित होंगी मै हूं ना,ये सुनकर मै अत्यन्त प्रसन्न सा हो गया.
,मृदुला दीदी के सहयोग से ही मुझे एक पत्रकार महोदय जी का ईमेल भी मिला मिला.
और उन्होंने ही मेरी पहली कहानी "नरपशु" को प्रकाशित करवाया, जिस दिन मेरी पहली कहानी "नरपशु" प्रकाशित हुई थी, मेरे पैर तो धरती पर नहीं थे
मै बहुत खुश हुआ था सबसे पहले मैंने उसे फेसबुक पर पोस्ट किया था यकीन ही नही हो रहा था, जो कभी रात में सपनों में देख के खुश होता था आज वही हकीकत में हो चुका था तो प्रसन्नता तो जायज़ ही थी , उसके बाद मेरी आशाएं और बढ़ने लगीं सोचने लगा की।
काश मुझे भी कभी कोई साहित्यिक समूह से प्रमाण पत्र मिलता ....
वो भी सपना मृदुला दीदी की बदौलत ही पूरा हुआ। मुझे पहली बार किसी साहित्यिक समूह से मृदुला दीदी ने ही जुड़वाया था ।
और वहां से भी मुझे सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान मिला तब इस दिन मै फुले नही समा रहा था ।.
मुझे विश्वास ही नही होता था , धीरे धीरे मेरे पास बहुत सारे
सम्मान पत्र मिलने लगे मै इन पत्रों को जब फेसबुक पर मृदुला को संबोधित करके आभार प्रकट करते हुवे पोस्ट करता , श्रेय मृदुला दीदी को देता तो तो....दीदी बोलती थी ...नीरज यह आपके मेहनत से सम्मान प्राप्त होता है इसने मेरा कुछ भी श्रेय नहीं मुझे संबोधित ना किया करो ।तब मै मृदुला दीदी से बोलता था।
दीदी आपके सहयोग से ही सब सम्भव हुआ है ,मुझे जो कुछ
भी सम्मान मिलता इसकी सहयोगी अपभी हो ।इस बात पर मृदुला दीदी...
कहती थी ,!नही नीरज ये तुम्हारे
मेहनत और सृजन शीलता के कारण मिलता है ,मैंने तो बस कुछ ग्रुप के लिंक और मात्र कुछ पत्रकरों के बस ईमेल ही दिया है ,मेहनत तो
तुम कर रहे हो नीरज , लेकिन भले मृदुला दीदी अपना क्रेडिट ना ले लेकिन वास्तव में जब तक मृदुला दीदी से
मिला होता तो मुझे किसी साहित्य ग्रुप से भेंट नही होता , सच में वो पहली बार कहानी प्रकाशित होना और पहली बार सर्टिफिकेट मिलना मेरे जीवन का सबसे बड़ा खुशी का पल है , जो मृदुला दीदी की देन है ।
जबकि मृदुला दीदी भी एक नवोदित रचनाकार ही है, अभी वह भी सीख रही है.
हृदय से आभार मृदुला दीदी ,
अब तो सम्मान पाना और न्यूज मे अक्सर ही रचनाएं प्रकाशित होना सामान्य सी बात हैं, लेकिन पहली दफा जब ये खुशी मिली थी उसे भलाया नही जा सकता है,
मेरे लिए वह सबसे बड़ी खुशी के पल थे ।
स्वरचित
नीरज कुमार सिंह
देवरिया यू पी