साहित्यिक पंडानामा:८००

भूपेन्द्र दीक्षित
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो!


श्रवण खोलो¸


रूक सुनो¸ विकल यह नाद


कहां से आता है।


है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?


वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?


जनता की छाती भिदें


और तुम नींद करो¸


अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।


तुम बुरा कहो या भला¸


मुझे परवाह नहीं¸


पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।


हो कहां अग्निधर्मा


नवीन ऋषियो? जागो¸


कुछ नयी आग¸


नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।


शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी


मखमली सेज पर


चिनगारी की वृष्टि करो।


गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸


झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।


है जहां–जहां तम तोम


सिमट कर छिपा हुआ¸


चुनचुन कर उन कुंजों में


आग लगाता हूँ।-दिनकर


आज मैं सोचता रहा ,मित्रों!, इससे सुंदर पंक्तियां मेरे मस्तिष्क में साहित्यिक पंडानामा की आठ सौ वीं कड़ी के लिए और न आ सकीं।
आज मुझे बहुत ख़ुशी है कि बहुत समय नहीं हुआ, इस श्रृंखला को मैंने प्रारंभ किया था और अनवरत चलते चलते हम आठ सौ का अंक पार कर गये। मुझे यह भी प्रसन्नता है कि जो साहित्य से जुड़े नहीं,वे भी इस वाल पर आते हैं और मुझे कुछ न कुछ सोचने की सामग्री दे जाते हैं।आप सभी का मैं बहुत आभारी हूं। 
जहां अच्छी से अच्छी कविता को श्रोता नहीं मिलते,पत्रिका को नियमित पाठक नहीं मिलते, वहीं  साहित्यिक पंडानामा से नियमित साहित्यकार जुड़े हुए हैं और उनकी टिप्पणियों से नितनूतन ऊर्जा मुझे प्राप्त होती है। आदरणीय सच्चिदानंद शलभ दादा ,भाई विनय विक्रम सिंह जी,दीपक श्रीवास्तवजी, गंगा स्वरूप मिश्र जी, भाई रजनीश मिश्रजी, हिंदी सभा के यशस्वी अध्यक्ष आशीष मिश्र जी,कार्तिकेय शुक्ल जी,डा अरुण त्रिवेदी जी,जगदीश पीयूष जी, राम बहादुर मिश्र जी, भाई राजकुमारतिवारी जी,सतीश मिश्र जी, विनय दास जी , डॉ. अतुलमोहन सिंह गहरवार ,योगेंद्र मधुप जी मेरेअनुज तूफान सिंह जी,संतोष मिश्र जी,डॉ अभिषेक मिश्र ,दिनेश चंद्र मिश्र जी,नवनारायण शास्त्री जी ,गुड्डो अम्माजी, डा राजीव श्रीवास्तव जी,शरद आलोक जी- मैं सभी का बहुत-बहुत आभारी हूं। पंडा नामा अनवरत जारी रहेगा,जब तक आप सबका स्नेह इसको अभिसिंचित करता रहेगा।आज ज्ञान-विज्ञान ग्रुप द्वारा आनलाइन कवि समागम भी हुआ।दादा सच्चिदानंद शलभ और भाई विनय विक्रम जी ने आज का दिन यादगार बना दिया।


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