राम राम बस रटते फिरते,
मन में राम बसाओ तो,
पुतले को तो बहुत जलाया,
मन का रावण जलाओ तो.!!
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नितदिन कन्यायें हैं लुटती,
उनको जरा बचाओ तो,
मातायें आश्रमों में रहतीं,
उनको भी अपनाओ तो.,
रावण को क्या कोसते फिरते,
रावण मन से भगाओ तो.!!
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रावण ने तो गति पा ली,
प्रभु के हाँथ सिधारे तो,
भले ही पाप किये थे उसने,
प्रभु जी उसको तारे तो,
प्रवृत्तियां रावण की दूर करो,
प्रभु को पास बुलाओ तो..!!
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गली गली में पाप है बढ़ता,
पहले पाप मिटाओ तो,
हर घर में अब रावण रहता,
उसको मार भगाओ तो,
रटने से राम नहीं मिलते हैं,
मन में राम बसाओ तो..!!
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राम राम बस रटते फिरते,
मन में राम बसाओ तो,
पुतले को तो बहुत जलाया,
मन का रावण जलाओ तो..!!
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स्वरचित अर्चना भूषण त्रिपाठी, "भावुक"
@नवी मुंबई मूलनिवासी (प्रयागराज)