वाराणसी। मुर्धन्य सामाजिक विचारक एवं समाज कर्य विभाग, म.गां.काशी विद्यापीठ के संस्थापक प्रो. राजाराम शास्त्री जी की 116 वीं जयंती मनायी गयी। जिसकी अध्यक्षता माानीय कुलपति प्रो. टी.एन.सिंह ने की। जयंती कार्यक्रम में प्रो. राजाराम शास्त्री जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा की गयी। ज्ञातव्य है कि प्रो. शास्त्री जी का जन्म 04 जून, 1904 को मीरजापुर जिले के चुनार तहसील के जमालपूर ग्राम में हुआ था। महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में चलाये जाने वाले स्वतंत्रता आंदोलन में वे मात्र सोलह वर्ष की अवस्था से जुड़ गये थे। प्रो. शास्त्री जी एवं इनके अनन्य मित्र पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने सन् 1925 में काशी विद्यापीठ से दर्शनशास्त्र विषय में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी। सन् 1927 में डाॅ0 भगवानदास जी ने प्रो. राजाराम शास्त्री जी के दर्शन विषय के गूढ़ ज्ञान से प्रभावित होकर दर्शन विषय का प्राध्यापक नियुक्त किया तत्पश्चात सन् 1934 में अध्ययन हेतु सेवाग्राम वर्धा चले गये।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में निरंतर लगे रहने के कारण एक बार कठोर कारावास एवं दो बार नजर बंद भी रहे। सन् 1921 में डाॅ. राम मनोहर लोहिया के साथ कांग्रेस छोड़कर नवगठित सोशलिष्ट पार्टी में आ गये। सन् 1971-1977 तक लगभग छः वर्षो तक आप वाराणसी से लोकसभा के सांसद रहे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात काशी विद्यापीठ में देश की नयी आवश्यकताओं के अनुरूप इन्होंने एम.ए. स्तर पर समाज विज्ञान वेत्ता (मास्तर आॅफ एप्लाइड सोशियालोजी) उपाधि हेतु पाठ्यक्रम एवं विभाग की संकल्पना की जो कि बाद में समाज कार्य विभाग बना।
प्रो. शास्त्री जी इस विभाग की स्थापना वर्ष 15 अगस्त, 1947 से लेकर 1967 तक इसके प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। आपने समाज कार्य के प्रोफेसर के रूप में सान् 1960-61 में शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका में समाज कार्य विषय का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।
विभिन्न शैक्षिक सांस्कृतिक मण्डलों के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में अपने अमेरिका, सोवियत संघ, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, जापान एवं इंडोनेशिया आदि अनेक देशों की यात्राएं की। उन्होंने अनेक मानक कृतियों की रचना की जिनमें मन के भेद, स्वप्न दर्शन, समाज विज्ञान सिद्धांत एवं प्रयोग तथा समाज कार्य मुख्य है।
प्रो. शास्त्री जी के शैक्षिक अवदान का सम्मान करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान ने सन् 1987 में उन्हें अपने विशेष ‘संस्थान सम्मान’ से विभूषित किया। सन् 1991 में उन्हें भारत के प्रतिष्ठित सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया।
प्रमुख वक्ता प्रो0 गिरीश शास्त्री ने कहा कि समाज कार्य विभाग की आत्मा में प्रो0 राजाराम शास्त्री का वास है। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. टी.एन.सिंह ने कहा कि समाज कार्य के सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को प्रो0 राजाराम शास्त्री जी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने विभिन्न भारतीय दर्शनों के उपयोगी तत्वों को समाज कार्य शिक्षण में समन्वित किया जिससे आज भी काशी विद्यापीठ का समाज कार्य का पाठ्यक्रम उनके दार्शनिक विचारों से अनुप्राणित है।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. संजय, विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष समाज कार्य विभाग ने किया। उन्होंने कहा कि आज प्रातः स्मरणीय प्रो. राजाराम शास्त्री जी सशरीर हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनके कृत्य एवं विचार हमारे लिए अनुकरणीय है।
कार्यक्रम में प्रो. रामप्रकाश द्विवेदी, प्रो. वंदना सिन्हा, प्रो. एम.एम. वर्मा, प्रो. भावना वर्मा, डाॅ. निमिषा गुप्ता डाॅ. शैला परवीन, डाॅ. अनिल कुमार चैधरी, डाॅ. संदीप गिरि, श्री अनिल कुमार, डाॅ. चन्द्रशेखर सिंह, डाॅ. कृष्ण कुमार सिंह, डाॅ आलोक शुक्ला, डाॅ. अश्विनी सिंह एवं डाॅ. सतीश कुशवाहा आदि ने भी विचार व्यक्त किये।