प्रेम के दोहे

 



मेघ  गरजते  गगन में , बूँद गिरे रसधार
प्यासा मन है बावरा,आ जाओ घर द्वार


बादल  छाये गगन में , काली घटा छाई
अंग  प्रत्यंग जल उठे , प्रेम अग्न लगाई


बदली बरसी गगन से,अवनि प्यास बुझाई
पपीहे सा तन प्यासा , मन में मस्ती छाई


शीत  आर्द्र  हवा चली , प्रेम भाव जलाए
तन बदन है सिहर उठा,कौन भला बुझाए


सुखविंद्र  खड़ा  राह में ,.बाजुएँ  फैलाए
आ जाओ आलिंगन में,मन शांत हो जाए


-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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