फिल्म समीक्षा : भोजपुरी फिल्म  "लाग़ल रहा बताशा"


नीरज कुमार 


इस लॉक डाउन में भोजपुरी फिल्म के दर्शकों के लिए एक अच्छी खबर है , जी हां अगर आपके विचार बन ही रहें हैं भोजपुरी फिल्म देखने की तो "लागल रहा बताशा" फिल्म देखें अगर 
आनंद से न भर गए तो कहिएगा .........
भोजपुरी फिल्म की इतिहास की यह पहली फिल्म है जो बिल्कुल ही साफ सुथरी फिल्म है, मै इस फिल्म की कोई बहुत तारीफ नही कर रहा हूं यह हकीकत है ।भोजपुरी में मैंने पहली ऐसी फिल्म देखी है, जो इतनी साफ सुथरी फिल्म है ,साथ इस फिल्म की एक और ख़ास बात यह है की यह फिल्म शिक्षाप्रद भी है ।फिल्म नैतिकता से भरपूर है, फिल्म को कामेडियन आर्टिस्टों को नजर में रखकर बनाई गई है ,फिर भी फिल्म पूरी तरह से कामेडी फिल्म नही कहेंगे यह फिल्म कोमेडी के साथ साथ एक अच्छी "इमोशनली लव स्टोरी "भी कही जा सकती है ।फिल्म भोजपुरिया परिदृश्य पर ही आधारित है । फिल्म की पटकथा बहुत ही बहुत भावपूर्ण है ,
कॉमेडी के साथ यह शिक्षा भी देती है।यह भी कह सकते हैं की एक टिकट में  दो शो ।फिल्म की कहानी बहुत सहज और सरल 
ढंग से लिखी गई जो दर्शकों अपनी खींचती है ,दर्शक बैठने के बाद पूरी फिल्म देखकर ही उठेगा बहुत ही लवली स्टोरी है।
"लागल रहा बताशा" फिल्म भोजपुरी  फिल्मों को श्रृंखला में एक आदर्श फिल्म कहलाने के काबिल है।फिल्म की कहानी एक गांव "जमुहट"के सात मित्रों की कहानी है ,इस फिल्म में साथ दोस्त होते हैं संयुक्त रूप से एक "नौटंकी "ग्रुप बनाकर उसी से अपनी रोजी रोटी चलाते हैं , मगर फिल्म मोड़ तब आती है, जब आम्रपाली जी हिंदी अभिनेत्री रहती हैं और  जो मुंबई से भोजपुरी सीखने उसी गांव में आ पहुंचती जहां सात नमूने नौटंकी ग्रुप चलाते होते हैं ,जी हां सही समझे हैं आप हां भाई  उसी गांव" जमुहाट"में  ही और सरपंच के आदेशनुसर ही आम्रपाली जी को भोजपुरी भाषा सिखाने की पूरी
जिम्मेदारी उन्हीं नौटंकी ग्रुप को दी  जाती है ।इधर फिल्म का 
मुख्य पात्र जिसका नाम "बताशा "मतलब मनोज टाइगर जो 
पहले से ही आम्रपाली को भगवान की तरह पूजते रहते हैं ,मतलब आम्रपाली के जबरदस्त दीवाना रहे हैं, आम्रपाली  जब
गांव में आने के बाद भोजपुरी सीखते समय सातो मित्रों से खूब घुल मिल जाती हैं ।सभी से काफी स्नेह भी पाती हैं, देखते ही देखते 
" मनोज टाईगर "वास्तव में आम्रपाली से प्रेम कर बैठते हैं उधर आम्रपाली तो  अनजान हैं, उनका सगाई  भी हो  चुका होता है , और चंद दिनों में वह अपने  अपने मंगेतर से विवाह करने वाली होती हैं। ,जब आम्रपाली का मंगेतर उन्हें मुंबई ले जाने के लिएआता है तब "मनोज टाइगर" को झ्टका लगता है , इसको लेकर उनके मित्र समझाते भी हैं की भूल जाओ मगर प्रेम तो प्रेम है। ओ माई ये पूरी कहानी मै ही  बता दूंगा तो आप देखेंगे क्या ?
आप खुद देखिएगा फिल्म में आगे क्या होता है ?.....फिल्म के 
शुरुवात में "कल्याण सेन"जो "रंगाश्रम"थियेटर गोरखपुर के हैं , वो बहुत छोटा ही  रोल किए हैं मगर अभिनय से बांध देते हैं ,आनंद मोहन जी जो डाक्टर रहते हैं उन्हीं पास पेट की दवा लेने आते हैं  मरीज के रूप में नाम रहता है चुटकी उनका अभिनय बहुत ही सुंदर लगता है ।
फिल्म में , "मनोज टाईगर "और "आम्रपाली दुबे"जी मुख्य भूमिका में हैं इनकी बेहतरीन अदाएगी बहुत ही आकर्षित करती है दर्शक को लुभाती है। , फिल्म हंसा हंसा कर लोट पोट कर देती है। लेकीन यह फिल्म  अंत में जाकर सीरियस हो जाती है , मनोज टाईगर
और आम्रपाली जी ने जबरदस्त अभिनय किया है ।फिल्म में प्रेम किसी को भी मुक्कमल नही मिलता है ।फिल्म की हीरोइन  "टाईगर"को कभी प्रेमी स्वीकार नहीं करती है। जबतक वह उन्हें समझती है ,तबतक  बहुत देर हो चुकी होती है।
फिल्म का टाइटल सॉन्ग बहुत ही आकर्षित करता है ।इस फिल्म में " संभावना सेठ "आइटम सॉन्ग के द्वारा दर्शकों को खूब लुभाती हैं, फिल्म में लिरिक्स "प्यारे लाल यादव कवि" जी के हैं ।साउंड मदन सिंह जी का है, सिनेमेटोग्राफी फिरोज जी का गजब का है।
म्यूजिक "ओम झा जी" का है ।फिल्म में गजब की सिनेमेटोग्राफी हुई है , फिल्म की शूटिंग उत्तरप्रदेश के "देवरिया" जिला के नजदीक "बैतालपुर "के पास एक गांव में किया गया है ।फिल्म देशी क्लाइमेट पर आधारित है ,फिल्म  अधिकतर शूटिंग देवरिया में की गई है ,कुछ शूटिंग मुंबई में भी किया गया है  ।फिल्म के डायरेक्टर "आलोक विषेन"
जी द्वारा बहुत मेहनत किया है ,ओम जी की संगीत भी लाजवाब है ।अविनाश दिवेदी , आनंद मोहन, प्रकाश जायसवाल ,संतोष श्रीवास्तव ,के जी गोस्वामी , विनोद मेहरा ,  सी पी भट्ट, महेश आचार्य ,सोनू पांडेय , धामा वर्मा , संजय पांडेय , किरण यादव जो बताशा के मां की भूमिका में हैं ,वो भी इसमें कॉमेडी करती देखी जा सकती हैं, कहने का मतलब यह फिल्म है तो कॉमेडी लेकिन इसे लवस्टोरी भी है , थोड़ी हलकी फुल्की फाइट भी है अतः  पूरी तरह से ड्रामा फिल्म है ।दर्शकों को खूब पसंद आएगी ,सभी कलाकारों ने बहुत मेहनत किया है फिल्म में दिखती है मेहनत सभी की , शानदार फिल्म है , पैसा वसूल फ़िल्म है ।संगीत ,नृत्य , मेकप, एडिटिंग , लोकेशन  , ड्रेसअप सभी किफायती हैं, मगर असरदार है ,सभी खूब आकर्षित करते हैं।
भोजपुरी में ऐसी साफ सुथरी सुंदर फिल्में बहुत कम बनती हैं इसलिए सभी भोजपुरी प्रेमियों आप यह फिल्म "लागल रहा बताशा"अवश्य देखें यह साफ सुथरी अच्छी मूवी है पूरे परिवार के साथ यह देखी जा सकती है ।



नीरज कुमार 
देवरिया यू पी


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