ओ फरिस्ते

 



ओ‌ फरिश्ते तुम्हारी व्यथा
लेकर आई है
बौराई हवा
बताती रही
किस्से
तेरे दर्द की


मरहम लगाने
कौन आया
वही ना
जिसने कभी
अपना होने का
दावा न किया था


जिसने
दावा किया था
वे आज दबे हैं
किसी गुफा में
अनजान बन


कुछ इंतजार
कर लो
आएंगे
फिर से
नये दावे लेकर!


लता प्रासर


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