नारी


नारी को ही केवल
क्यूँ है सहना पड़ता
नारी को ही केवल
क्यूँ है जलना पड़ता
ढोती रहती है निरंतर
सबका बोझ वादों का
थामें रहती है निरंतर
सबका जोर बाहों का
फिर क्यूंँ तमाशा उसका
उसको बनना पड़ता
नारी को....
खूनी रिश्ते पानी बनकर
बह गए गटर के पानी में
सींचे रिश्ते बचे नहीं
रह गये कथा कहानी में
नारी को ही केवल
क्यूँ है तजना पड़ता
नारी को ही.....
तड़प तड़प कर है वो रहती
फिर भी मुख से कुछ न कहती
अपनी पीड़ा अपनी कथनी
खुद से ही बाँचती रहती
नारी को ही केवल
क्यूँ है तड़पना रहता
नारी को ही....
सब हो गये हैं बहरे
कुछ नहीं सुनाई देता
पीड़ा एक नारी की
क्यूँ नहीं दिखाई देता
पल पल टीसती रहती
फिर भी हंसती रहती
नारी को ही केवल
सबकुछ सहना पड़ता
नारी को ही...
नारी को ही केवल
क्यूं है सहना पड़ता।
रीना मिश्रा
देवरिया,उत्तर प्रदेश


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