मित्र


"मित्र,,,
अधिकार है तुम्हें
अच्छाई,मेरी बुराई
सब भूल जाने का
प्रेम के वश 
हो जाने का
जिद करने का
और
उलाहना देने का
मित्र,,,,
मित्रता में
अपना क्या ??
बेगाना क्या??
बस खुश रह लो
मित्र को भी सँग
खुश रहने दो,,,,
मित्र,,
मित्रता में
न तुम बड़े हो
न मैं ही छोटा हूँ
बड़े-छोटे का
भेद मिटाकर
सँग अपने
स्वीकार तो कर लो,,
मित्र,,
मित्रता की आड़ में
कोई गलत न कर जाए
कहने को सब
मित्र हैं अपने
भरम न मेरा
कहीं गुजर जाय,,
मित्र,,
मित्रता की
लाज बचा रखना
कभी जो हो 
गलती उसीसे से
प्यार से
गले लगा लेना
मित्र वही जो
सुख में दुःख में
अपना बनकर 
आता है
और न जाने
गले लगाकर
सब दुःख को तो
भुलवाता है,,,,,
*********
©डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी


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