माँ होती है अन्तर्यामी (  संस्मरण )

सुषमा दीक्षित शुक्ला


 इस बात को मैंने महसूस किया है  कि माँ अन्तर्यामी ही होती है । बात उन दिनों की है जब मैं महिला कल्याण निगम के श्रमजीवी महिला आवास  लखनऊ में बतौर सुपरिंटेंडेंट कार्यरत थी ।छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी निभाने वाला पद मुझे संभालना पड़ रहा था । इस होस्टल मे डॉक्टर ,इंजीनियर  आदि  उच्च पदों पर आसीन लड़कियां  प्रवास करती थी उसमे से कुछ मुझसे उम्र मे भी बड़ी थी।करीबन 600 युवतियो को सम्भालने की जिम्मेदारी मुझपर थी  उनमे से ज्यादातर अविवाहित लड़कियां थी ।मैं अपनी कठिन जिम्मेदारी को कम उम्र के बाबजूद  सफलता पूर्वक मैं निभा रही थी ।
 उन दिनों में नवविवाहिता भी थी अतः मुझे अपनी विधवा मां से बिछड़े ज्यादा लंबा समय भी नहीं हुआ था। पिताजी का देहांत मेरे विवाह के डेढ़ साल पूर्व ही हो गया था अतः  माँ ही हम सब बच्चों का सहारा थी।
 हॉस्टल में मुझे आवास मिला हुआ था जहां मैं अपने पति के साथ ही रहती थी, एवं कई सहायक भी सरकार की तरफ से मिले हुए थे ।
उन्हीं दिनों जब मैं मां बनने वाली थी,व मेरे प्रसव को थोड़ा समय ही बचा था तभी  अचानक मैं एक  गंभीर बीमारी का शिकार हो गई। जैसे ही टेस्ट में बीमारी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, मेरे पति घबराते हैं रिपोर्ट लेकर आए और मुझे
 हिम्मत बंधाते हुए  बोले कि घबराना नहीं ठीक हो जाओगी ।मैं कुछ दिन पहले से ही शारीरिक पीड़ा से  परेशान थी ऊपर से जैसे ही गंभीर बीमारी की जानकारी मिली कि मैं घबरा कर जोर जोर से रोती हुई किसी शिशु की भांति बस अम्मा अम्मा एक ही रट  लगाकर रोने चिल्लाने लगी  थी  कि, मुझे अम्मा के पास जाना है,,,, मेरी अम्मा को बुला दो,,, अम्मा ,,अम्मा,, मेरी अम्मा ,,आ जाओ ,,,और किसी की कोई बात नहीं सुन रही थी। 
सहसा सारा जहां ही भूल गई थी  मैं जबकि मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने वाले मेरे पति मेरे साए की तरह तन-मन-धन मुझ पर निछावर करते  हुए मेरे साथ रहते थे और मुझे बेइंतहा प्यार देते थे,बढ़ा ख़याल रखते थे। 
लखनऊ में रहने वाली मेरी जीजी व जीजा भी मेरी बीमारी की खबर सुनकर तुरंत हॉस्टल आ गए थे ,  मुझे हौसला दे रहे थे दुलरा रहे थे ।मेरे हॉस्टल की सारी लड़कियां जो कि सैकड़ों की संख्या में थी एवं सारा स्टाफ आया, चपरासी, सिक्योरिटी असिस्टेंट वार्डन आदि मेरे रोना सुनकर मेरे समीप दौड़ते हुए आ गए ,और मुझे समझा रहे थे। लड़कियां सब सेवा करने जुट गयी थी ,लेकिन उस समय मैं यह भी भूल गई थी कि यहां पर मैं एक अधिकारी के पद पर हूं । जहां मुझसे मिलने के लिए लोग अपॉइंटमेंट लेकर ही मिल पाते थे, जहां हमेशा हॉस्टल की लड़कियों के सामने अनुशासन बनाए रखने के लिए काफी रौब ,सख्ती और गंभीरता की डीलिंग करनी पड़ती थी ।इतनी सारी युवा लड़कियों को जो कि कई मुझसे आयु में बड़ी थी ,जिनको कंट्रोल करने व संभालने की जिम्मेदारी मेरे सर पर थी ,उस जगह पर, उन सबके सामने  मैं किसी छोटे शिशु की भांति अम्मा अम्मा चिल्ला कर जमीन पर बैठकर  सर पकड़कर रो रही थी।
 उन दिनों मोबाइल युग नहीं था जो अम्मा को तुरंत सूचना दी जाती।  300 किमी दूर नेपाल बार्डर पर लखीमपुर जिले मे मेरे गांव था वहाँ पर तब टेलीफोन भी नहीं था ,वहां से 20 किलोमीटर दूर कस्बे में पीसीओ हुआ करता था ।
पति ने मुझे समझाया अभी रात है कल तुम्हारे घर खबर कर देंगे ।अम्मा जी आ जाएंगी  ,लेकिन मैं कहां सुनने वाली  थी बस एक ही रट लगाई थी मुझे अभी ले चलो मेरे घर नहीं तो मेरी अम्मा को तुरंत बुला दो ,,,बस लगतार रोये ही जा रही थी ,किसी की कोई बात नही सुनाई दे रही थी।
 बस केवल अम्मा की  ममतामयी छवि के सिवा कुछ न दिख रहा था ,,,,।
लेकिन सच कहती हूं कि मां तो अंतर्यामी होती है रात के 10:00 बजे अचानक मेरी अम्मा सामने आकर खड़ी हो गई ,मैंने समझा कि शायद सपना देख रही हूँ अम्मा तुरन्त कैसे आ सकती हैं वो भी 300  किलोमीटर से ।
 तभी अम्मा बोली,,, कि  न जाने क्यूँ आज सुबह से मेरा मन नहीं लग रहा था ,,कि बिटिया तुम कहीं परेशान तो नहीं,,,, मेरा जी घबरा रहा था, इसलिए मैं अकेली चल पड़ी,,,।
बस फिर क्या था अपनी प्यारी   अम्मा  को देखते ही  मेरा हाल ऐसा था ,,,जैसे मरने वाले  को जिन्दगी मिल गयी  हो ,,,,जैसे प्यासे को सावन मिल  गया हो ,,,,जैसे गईया से उसका बछड़ा मिल गया हो ,,,,।
अम्मा को देखते ही मैं चिपक कर रोने लगी , मेरा सारा दर्द , डर घबराहट सब पता नही कहाँ चला गया।
फिर उन्होंने मेरी उसी तरह से दिन रात सेवा  व केयर की  जैसे कभी बचपन में पाला  पोसा होगा।
 मेरे स्वस्थ होने तक मेरी प्यारी अम्मा मेरे पास रुकीं रही व सफलतापूर्वक प्रसव कराकर, नाती को गोद में खिला कर ही वापस घर गई ।
अब तो  प्यारी अम्मा की यादें ही शेष है ,मगर फिर भी जब कभी हद से भी ज्यादा परेशान होती हूँ तब अम्मा अम्मा कह कर रोने लगती हूं ,लगता है वही  आकर मेरा सर सहलाकर   मेरे आंसू पोंछती  हैं और मुझे संभाल लेती हैं ।
सच कहती हूँ , मां अंतर्यामी ही होती है ,,,,,,।


सुषमा दीक्षित शुक्ला


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