क्षितिज के उस पार
इक गाँव बसा है
जहाँ उषा की पहली किरण के साथ ही
चिड़ियों का कलरव
और मंदिर की घण्टी बजती है
जहाँ बच्चे आर्यभट्ट और कलाम
का अनुकरण करते हैं
जहाँ इसरो है नासा है
घर घर सोलर और लैपी की भी भाषा है
सरहदों से परे है ये गाँव
पंक्षी और पवन के सरीखे
लोग स्वच्छंद हैं
कलियाँ खिलखिलाती हैं
तितलियाँ उड़ती हैं
अपनी सुगन्ध से बादल तक को महकाती हैं
यहाँ उनको.....नोचने की प्रथा नहीं हैं
यहाँ दूल्हा बिकता भी नहीं है
स्त्री के विद्योत्तमा ,अपाला , गार्गी से हक हैं
यहाँ सृष्टि के सब पोषक हैं
मिट्टी के फ्रिज और जूट के तोषक हैं
हर हाँथ में दिखती पुस्तक है
सरकारी और प्राइवेट का नहीं कोई चक्कर है
विद्या का मोल नहीं वो अनमोल है
इसलिए आरक्षण का नहीं कोई रोल है
काश होता इक ऐसा गाँव
क्षितिज के इस पार भी ...
काश..!!
अर्पना मिश्रा
उन्नाव (उ. प्र.)