काव्य मोती


येसे उपजे मन मे कविता
ज्यो धरती मे मोती निबजे
कण कण सकल चराचर
व्याप्त अदृष्य
ढ़ूढ़ निकाले
चिंतन के दृग
खाद डाल शब्दो की
उपमा अम्बु
मन समीर सा
भरे उडाने
मति- मेहनत
खोदे खेती की
अनचाही खरपतवार
हरियाली लहराती है 
तब
कविता की फसले। 


                देवकी दर्पण


 


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