मोक्षदायिनी पापा विमोचीनी गंगा मेरी माता है।
विष्णु चरण से निकल के आई महिमा सब नर गाता है।
भागी रथी के घोर तपस्या देख के मां प्रसन्न हुई।
जो नर मां की शरण में जाए पार उतर वो जाता है।
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सागर के पुत्रों को तारण गंगा धारा पर आई।
अतुल वेग से बहते बहते शिव के जटा समाई।
चांदी जैसी चंचल लहरे उज्जवल रूप सजा कर
गो मुख गंगा धाम परम है अमृत सम कहलाई।
** मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)