गीतिका

सोचता हूँ क्या जमाना फिर नगर को जाएगा
जिस जगह से भिनभिनाया उस डगर को जाएगा
चल पड़े कितने मुसाफिर पाँव लेकर गांवों में
क्या मिला मरहम घरों का जो बसर को जाएगा।।


रोज रोटी की कवायत भूख पर पैबंदियाँ
जल बिना जीवन न होता किस नहर को जाएगा।।


बंद सारे रास्ते थे वाहनों की छुट्टियाँ
धौंस डंडों की अलग थी क्या अमर को जाएगा।।


वंदिशों के साथ आखिर खुल रहे है रास्ते अब
पाँव को छाले मिले जो अब जहर को जाएगा।।


देख गौतम देख ले परदेशियों की दास्ताँ है
घर हुआ नहिं घाट का फिर भी शहर को जाएगा।।


महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी


Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
सफेद दूब-
Image
आपका जन्म किस गण में हुआ है और आपके पास कौनसी शक्तियां मौजूद हैं
Image
भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के मनीषि बिमलेन्दु पाण्डेय जी के जन्मदिन के बहुते बधाई अउर शुभकामना
Image