लगी चोट दिल पर आप याद आए बहुत
यूं गम की आग बुझाने को आंसू बहाए बहुत
एक बस दिल में चुभ के रह गया नश्तर सा
यूं तो जमाने ने इल्जामों के तीर चलाए बहुत
हो ना सकी बयां हमारी बेगुनाही की दास्तां
किस्से अपनी वफा के हमने सुनाएं बहुत
हम तो हम ही रहे कैसे बदलें खुद को भला
आप के करारनामे हमें फिर याद आए बहुत
आप भी समझोगे नहीं हमको इसका गम है
समझानें को तो हमने लोग समझाए बहुत
काश के खो जाएं आपके दिल के अंधेरों में
आएं ना निकल के कभी जमाना बुलाए बहुत
तुम क्या गए कि दुनिया में कुछ बचा ही नहीं
नजर आने को तो लोग नजर आए बहुत
जानेआप पर क्या हो असर मेरी बेगुनाही का
लगाने वालों ने तो हम पें इल्जाम लगाए बहुत
खुदको तलाशते कमबख्त़ उम्र बीत गई सुनी
हम ही न थे अपने ही साए नजर आए बहुत
स्वरचित :
सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश