32 केस आये थे पिछले साल चकिया ब्लॉक में
09 बच्चों ने दम तोड़ दिया था एईएस के कारण
05 मामले इस साल यहां आए हैं अब तक
एक भी बच्चे की यहां नहीं गई है जान
बड़ा बदलाव
चौपाल के कारण झाड़-फूंक के चक्कर में नहीं पड़ रहे लोग
निजी अस्पतालों की बजाय कर रहे सरकारी अस्पताल का रुख
आसीफ रजा
मुजफ्फरपुर । एईएस को मात देने में सरकार ने कमर कस ली है। इसमें गांव का चौपाल ढाल की तरह काम करने लगा है। चकिया के केयर बीएम कुंदन कुमार रौशन बताते हैं कि चौपाल से बड़ी जागरुकता आई है। पिछले साल चकिया ब्लॉक में 32 मामले आये थे, जिनमें नौ बच्चों ने दम तोड़ दिया। इस साल अब तक 05 केस सामने आये हैं, लेकिन यह जागरुकता और तत्परता का ही असर है कि इनमें से किसी बच्चे की जान नहीं गई है।
ऐसे गठित होता है चौपाल
प्रखंड कार्यालय का कोई अफसर इसमें नोडल अधिकारी होता है। केयर बीएम, सीडीपीओ के द्वारा नामित एलएस, विकास मित्र, जीविका के बीएमपी और अस्पताल के बीसीएम इसके मेंबर होते हैं। आशा और आंगनबाड़ी सेविकाओं की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनके अलावा जनप्रतिनिधि और गांव के लोग इसमें भाग लेते हैं।
कैसे काम करता है चौपाल
चौपाल के सभी सदस्य प्रतिदिन शाम में एक साथ बैठते हैं। इसमें आशा को यह बताना है कि उनके पोषक क्षेत्र में कितने बच्चे को बुखार है और उन्होंने कितने को दवा खिलाई है। आंगनबाडी सेविकाओं की भी यही जिम्मेवारी होती है। हर इलाके में अलग अलग दिन चौपाल लगता है। इसका टारगेट एरिया दलित मुहल्ला होता है। आम तौर पर कुपोषण के शिकार ज्यादातर बच्चे इसी इलाके के होते हैं। एईएस का जोखिम इनमें ज्यादा होता है। इन इलाकों में दीवारों पर जागरुकता संदेश लिखे गए हैं, ताकि लोगों को सतर्क रखा जा सके।
ऐसे फैलाई जा रही जागरुकता
चौपाल के जरिये एईएस के प्रति लोग जागरूक होने लगे हैं। चौपाल में जागरुकता तो फैलाई ही जा रही है, बच्चों की स्वास्थ्य जांच भी अस्पताल के डॉक्टरों के द्वारा की जा रही है। ग्रामीणों को तत्पर रहने के लिए कहा जाता है, क्योंकि बच्चे की जान बचाने के लिए 45 मिनट में इलाज जरूरी है। आशा या आंगनबाड़ी सेविका को तुरंत खबर करना है। बुखार कम करने का घरेलू उपचार तुरंत शुरू कर देना है। आशा या सेविका आते ही तुरंत आगे के प्राथमिक उपचार में लग जाती हैं। रेफर करने में देर नहीं करतीं।
आधी रात से सुबह का वक्त ज्यादा जोखिम भरा
चौपाल में बताया जाता है कि 10 साल से नीचे के बच्चों पर विशेष ध्यान रखना है, क्योंकि चमकी बुखार का अटैक आधी रात से लेकर सुबह तक के दौरान अक्सर देखने को मिलता है। चूंकि कम उम्र के बच्चे जल्दी बीमारी के बारे में बता नहीं पाते, ऐसे में ब्रेन डेड का रिस्क रहता है।
दूर हो रहीं लोगों की भ्रांतियां
गर्मी में आम-लीची का मौसम रहता है। दिन भर बच्चा पेड़ के पास खेलता है और रात में चमकी का अटैक हुआ तो लोग सीधे इसे भूत-प्रेत का साया मानकर गुणी-ओझा के पास भागते थे। यहां टाइम बर्बाद कर बच्चे की जान जोखिम में डाल देते थे। कुछ लोग निजी अस्पतालों में चले जाते थे, लेकिन अब चमकी के लक्षण दिखाई देते ही लोग सीधे सरकारी अस्पतालों का रुख करते हैं। लोगों का यह भरोसा बड़ा बदलाव ला रहा है।
एम्बुलेन्स नहीं मिले तो निजी गाड़ी का भाड़ा देती है सरकार
केयर बीएम कुंदन बताते हैं कि सरकार की तरफ से सुविधाओं की कमी नहीं है। एम्बुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था है। फिर भी अगर एम्बुलेंस आने में देरी हो तो निजी गाड़ी कर बच्चे को अस्पताल पहुंचाया जा सकता है। गाड़ी का भाड़ा सरकार की तरफ से भुगतान किया जाता है।