बीत गई यामिनी...


उठो कामिनी,बीत  गई यामिनी,
डूब  गई  तार-घट,  सागर- तट,
सह पाई  नहीं  किरण  रवि  की,
पूर्ण नभ गंगा है छुपी सागर अंक,
निहारिकाएँ  हो गईं सब  लापता,
उठो कामिनी, बीत गई  यामिनी!


कड़क  रही दामिनी,मेघ गर्जना,
वृष्टि  रिमझिम,धवल  हुई धरा,
हुई   मनभावन   तृण   हरीतिमा,
डोल रहा किसलय  का आँचल,
सुरभित हुई  नूतन   मधु- मुकुल,
उठो  कामिनी  बीत गई यामिनी!


मुर्ग़े देकर  अजान दे रहे दस्तक,
कोयल की  सरगम दे  रही तान,
गौरैये  सुना  रहे  मधुर   कलरव,
है  तो नहीं  यह  वासंतिक  माह,
फिर भी उतरा नहीं तेरा मधुमास,
उठो कामिनी बीत  गई  यामिनी!


अधरों  में समेटे  सोमरस सौरभ,
पलकों  पे  बोझ  खुमार हतप्रभ,
कुंतल  में  समेटे  चंदन  मलयज,
प्रियतम अँकवार में हुई मदहोश,
सोती  रहेगी तरूणी कब  तलक?
उठो  कामिनी  बीत गई यामिनी!!
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स्वरचित 
रंजना बरियार 


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