पहन कर नारंगी चोला,
सच का दिखावा करते हैं
रख कटारी बगल में ये,
राम नाम को जपते हैं,
ऐ प्राणी ,
तू सोच समझ लें
हित अनहित को आज परख लें
कभी जो आये स्याह अंधेरा
मन की लौ से इसे निरख ले
नीति अनीति के खेल को
अब तो मैंने जान लिया
छूपे हूए थे अपनों में जो
उन गैरों को पहचान लिया
होती नहीं वसीयत कोई यहां पर
अच्छे संस्कारों की
मुर्खो से बात ना करना तुम कभी
तहजीबों की
बनकर सूरज उगना सीखो
दीपक बनकर जलना
सीधी राह हमेशा चलना
दुख किसी को ना देना
किरण झा
✍🏼✍🏼 स्वरचित