नई नवेली दुल्हन सी
प्याली में सजी चाय देखकर
उसने पूछा मुझसे
कैसे इतनी गजब की चाय बना लेते हो
मैंने भी हँसकर कह दिया
प्यार से भट्ठी को जलाकर
अरमानों के पतीले को चढ़ा देता हूँ
मखमली पानी को उड़ेल देता हूँ उसमें
मोहब्बत का उफ़ान आने पर
विश्वास की चाय पत्ती
समझ की मिश्री डाल देता हूँ
अदरक और तुलसी का श्रृंगार करके
इलायची का इत्र छिड़क देता हूँ
जब चढ़ जाती है रंगत एक दूजे की
फिर छान देता हूँ प्याली में ऐसे
जैसे चाँद की रोशनी बादलों से छनकर आती है
सजाकर प्याली हाथों की पालकी में
"सुलक्षणा" को सौंप देता हूँ प्याली
और कहता हूँ एक ही बात
बनी रहे सदा अपने रिश्ते में ऐसी ही मिठास
ऐसी ही मिठास
©® विकास शर्मा