"अब कानपुर मा है निवास, हम ठेलिया रोजु लगाइत है बिस्कुट औ दालमोट बेचन का चमनगंज नित जाइत है।"


संस्कार भारती लोक कला अवधी, गाज़ियाबाद, के तत्वावधान में  अवधी कवि सम्मेलन का आयोज


गाजियाबाद । संस्कार भारती लोक कला अवधी, गाज़ियाबाद, के तत्वावधान में  अवधी कवि सम्मेलन का आयोजन व्हाट्सएप के माध्यम से संपन्न हुआ।
           इस काव्य समारोह की अध्यक्षता तड़िता काव्य के प्रणेता तथा गीतकार सच्चिदानंद तिवारी शलभ ने की। मुख्य अतिथि के रूप में हास्य व्यंग्य के रसावतार बाबा कानपुरी थे। उनके द्वारा पठित हास्य रचनाओं,
"अब कानपुर मा है निवास, हम ठेलिया रोजु लगाइत है बिस्कुट औ दालमोट बेचन का चमनगंज नित जाइत है।" तथा "लखनऊ की भूल भुलैया के चक्कर 25 लगाय गयन,
भूली भट्की मिलि जाय कोई पर हमही राह भुलाय गयन।" ने सबको हास्य रस से सराबोर कर दिया।   
         वाणी वंदना करते हुए कवि शलभ ने यह गीत पढ़ा-
राह देव मइया, प्रवाह देव मैया,
कविता कय सरिता की थाह देव मैया...
"हम न जैबै बलम घर बाबुल..... यह गाया, कानपुर की कवयित्री संतोषी दीक्षित जी ने। दिल्ली की कवयित्री सुषमा शैली ने गाया- पढ़यं सैंया सुबहियां अखबार रे...। वरिष्ठ कवि इन्द्रेश भदौरिया ने व्यंग्य रचना पढ़ी- बिन गया किहे पुरिखा तरि गें। अब जब बारी आई डा.अवधेश तिवारी भावुक जी की, तो उन्होंने यह कविता सुनाई-  सहर में न मन लागय,याद आवै गांव रे। लखीमपुर खीरी की कवयित्री शिवांगी मिश्रा जी ने गीत गाया- कइसे  आई हम दुअरिया,बढ़ि गा सइयां लाकडाउन रे। पितृ दिवस के आज के अवसर पर झांसी के सुकवि राजेश तिवारी मक्खन जी ने कहा- पिता को कोटि प्रणाम करें, आओ इनका सम्मान करें। वर्षा पर अत्यन्त शोभनीय अवधी रचना का पाठ किया मनोज मिश्र कप्तान जी ने। मुम्बई की कवयित्री नीतू पांडे क्रांति जी ने सुंदर गीत गाया- नयना गये बौराये, बिरह मा बालम न आये....। हिंदी व अवधी में छंद रचनाकार व आयोजन के संचालक विनय विक्रम सिंह "मनकही" ने हर पिता को समर्पित रचना,
"जीवन की हर अभिलाषा में,
चादर  पाँव  पसारे  जैसे।
हर पग नीचे सधी हथेली,
केवट  पार  उतारे  जैसे।
मन में  राम पुकारे जैसे।
मेरे  और   तुम्हारे  जैसे।
पापा साँझ-सकारे जैसे, साँसों के इकतारे जैसे।" सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया। उन्नाव के युवा कवि प्रवीण त्रिपाठी ने अपनी कविता,
"यादि करिति गरमिनि की छुट्टी,
लरिकांई के बहुत नीक दिन, मन माँ हूक उठावति हैं।" से पुनः गाँव की मधुर स्मृतियों को उकेरा। लखनऊ की कवयित्री उर्वशी तिवारी ने गाया-
मत लइहा भइया, इहां अहसान कोई......। कवयित्री कुसुम चौधरी ने गाया- हम तौ बिटिया का करिबय पियार बबुआ, हमरे अंगना म आई बहार बबुआ। शशि पांडे जी ने भावविभोरक यह परंपरागत गीत गाया- एजी सिया ऐसी सुंदर नार,रमइया संग बन को चली। विदुषी, लेखिका एवं कवयित्री, सीतापुर की डा. ज्ञानवती दीक्षित जी ने अवधी साहित्य पर बहुत महत्वपूर्ण शोधपरक भाषण दिया।      
         संस्कार भारती लोक कला अवधी के संयोजक एवं काव्य के सुहस्ताक्षर श्री चंद्र भानु मिश्र ने अवधी और अवधी के महत्व का बहुत अच्छे ढंग से प्रतिपादन किया। आपने अवध की माटी से प्रसूत महापुरुषों का नामोल्लेख करते हुए सराहनीय विवरण प्रस्तुत किया। इस काव्य समारोह का अत्यंत कुशल, सहज और प्रभावशाली संचालन किया, एनीमेशन जगत के चर्चित और हिंदी, अवधी के भाव प्रवण कवि श्री विनय विक्रम सिंह "मनकही" जी ने।
         अन्त में इस कवि सम्मेलन को अगले आयोजन तक के लिए स्थगित होने की घोषणा की गयी।


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