अग्नि परीक्षा कहाँ टली हैं।
सीतायें हर वक्त जली हैं।।
ज़ख्मों की ज्वाला से तपती
मोम बनी हर रोज़ गली हैं।
सीतायें हर वक्त जली हैं।।
प्यासी बंजर जैसी धरती
उपवन में पत्तों सा झरती
सूखे तरु पल्लव मे लिपटे
अंगारों के संग पली हैं।
सीतायें हर वक्त जली हैं।।
कभी उड़ी तो कतरे पंख
कभी दिया बिच्छू सा डंक
कभी बेच कर अपने सपने
किसी पराए संग चली हैं।
सीतायें हर वक्त जली हैं।।
कभी गालियों की बौछार
कभी सहा तन-मन पर वार
अपने कर्तव्यों के पथ पर
चलते चलते नित्य ढली है।
सीतायें हर वक्त जली हैं।।
©डॉ.शिवानी सिंह