भूपेन्द्र दीक्षित
साहित्य का क्षेत्र बहुत जटिलताएं लिए हुए है।इसमें तरह तरह के लोग हैं ।उनकी पृष्ठभूमि, उनका वैचारिक स्तर ,उनकी ग्राह्यता -सब भिन्न है।ऐसे में सत्य कभी कभी शत्रु अधिक तैयार करता है।बहुत दिन पहले मैंने एक गीत लिखा था-
झूठ फरेब और मक्कारी पर
जब जब वार किए मैंने।
एक एक सच के पीछे
सौ दुश्मन तैयार किए मैंने ।
यह गीत वर्षों बाद भी उतना ही सत्य है।
तो यह साहित्यिक पंडानामा आरंभ करने से पूर्व थोड़ा सा पृष्ठभूमि में चलूं।साहित्य की भूमि जितनी विविध और उर्वरा है,इसमें खर पतवार भी उतने ही अधिक हैं। गुटबाजी और प्रतिद्वन्दिता के खर दूषण छाए हुए हैं ।आप कितना अच्छा काम क्यों न करें, उनके मुँह में दही जमा रहता है।जब आप उन्हें साष्टांग दंडवत करें, तो उनका अहं संतुष्ट होता है।उनकी अश्लील और भद्दी कृतियों पर वाह वाह के कूडे के गंधाते ढेर उनकी पंडागिरी को मजबूत करते हैं ।उस चक्र व्यूह में अगर कोई राजा को नंगा कहने वाला फंस गया ,तो अभिमन्यु की तरह ये साहित्यिक पंडे उसकी साहित्यिक हत्या का षडयन्त्र आरंभ कर देते हैं ।
सभी पत्रकार भाइयों को शुभकामनाएं।इस संक्रमण काल में पत्रकारिता के अपने संकट हैं। मेरी कामना है विजयी हों।