देख विहग की राह ये, फिरता गगन महान।
है उड़ान में हौसला,घूमते है जहान।।
लक्ष्य उच्च रख हूँ चला , मंज़िल है अति दूर
आस रखे मन में सदा,जब बल हो भरपूर
मैं पतंग की तरह ही ,चाहूँ गगन उड़ान।
टूटे जीवन डोर भी ,कब उड़ जाये प्रान।।
जब पतंग उड़कर चले , लेती है नभ चूम।
उड़ती है होकर मगन,फिरती रहती घूम।
मानुस तन है जब मिला ,करो कुछ नेक काम ।
हौसलों की उड़ान भर,कर लो अपना नाम।।
रचनाकार- आशा उमेश पान्डेय