लिखना चाहूँ भी तुझे खत तो बता कैसे लिखूँ ?
ज्ञात मुझको तो तेरा ठौर-ठिकाना भी नहीं,
दिखना चाहूँ भी तुझे तो मैं बता कैसे दिखूँ,
पास आने को तेरे पास बहाना भी नहीं।
जाने किस फूल की मुंस्कान हँसी है तेरी,
जाने किस चाँद के टुकड़े का तेरा दर्पन है ?
जाने किस रात की शबनम के तेरे आँसू हैं,
जाने किन शोख गुलाबों की तेरी चितवन है ?
कैसी खिड़की है वह किस रंग के परदे उसके
तू जहाँ बैठके सुख - स्वप्न बुना करती है ?
और कैसा यह बाग है कि रोज तू जिससे
अपने जूड़े के लिये फूल चुना करती है ?
तू जो हँसती है तो कैसे कली चटकती है,
तू जो गाती है तो कैसे हवाएँ थम जातीं ?
तू जो रोती तो कैसे उदास होता नभ,
तू जो चलती है तो कैसे बहार थर्राती ?
फिर बता तू ही कहाँ तुझको पुकारूँ जाकर ?
सँदेसा भेजूँ किधर कौन - सी घटाओं से ?
किन सितारों में तेरी रात के तारे देखूँ ?
नाम पूछूँ तेरा किन सन्दली हवाओं से ?
ऐसे इन्साफ पै तेरा जो हैं यकीन नहीं,
दोष मैं इसके लिये तुझको नहीं कुछ दूँगा
किन्तु अब तेरे खयालों में तभी आऊँगा
इस गुनहगार जमाने को जब बदल लूँगा।।
प्रेमनाथ पाण्डेय