अमीर क्या जाने भूख का अनुभव ।जिनके पेट भरे होते है।
भूख समझते हैं वो बच्चे सपने जिनके रात को रोते।
किस्मत के मारे होते वो नहीं बिचारे वो होते है।
दो रोटी की खातिर बच्चे दिन भर बोझा को ढोते है।
दो रोटी की खातिर बच्चे छोड़ पढ़ाई बर्तन धोते।
छोटे छोटे बच्चे हमने देखे है भूखे ही सोते।
दर दर सभी भटकते रहते राह में ठोकर खाते रहते।
नन्ही नन्ही हाथ से अपने कठिन परिश्रम बेहद करते।
भूख जी कीमत क्या होती है वो जाने पहचाने उनको
भूख निचोड़े जो सोते है रात रात भर वो रोते है।
भूख की खातिर होते देखी मां की हमने नीलामी
भूख की खातिर किसानों को देखा है चढ़ते फांसी।
भूख की खातिर तन का सौदा तन का ही व्यापार है देखा
बच्चों की रोटी के खातिर हमने होते तन लाचार है देखा
कड़ी परिश्रम करते हैं वो पेट की हवस मिटाने खातिर।
चैन सकूं सब गंवा गंवा होते इनको मजबूर है देखा।
या तो काम दो या फिर खाना जो इनको जीवन देगा।
भूख के मारे बच्चे सारे जीवन भर गम धोते है।
स्वर्णिम सपने आंख में इनके।रात रात भर रोते है।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)