छूकर अरुणोदय धरा -गगन झंकृत होता नव मधुर गान।
अलसाई आंखो से प्रमुदित कलियों का करके मधुर पान।
बूँदों से झंझावात लिए कण-कण में तरुणाई घोली ज्यों।
मुग्धा प्रेयसी खुद चल करके साजन से मिलने आई क्यों।
मनुहार किये सहमे आंचल से पवन झकोरों से सहलाने।
जैसे पथ गामी भटक गया मन मगन झरोखे से बहलाने।।
पग- पग से कोई कमल धरे धारण धात्री ज्यों कामुक हो।
रसरंग सुगंधित प्रतिबंधित आकाश मिलन के सम्मुख हो।
देवों ने पुष्पबृष्टि करके अद्भुतअभिनन्दन बर्ष मनाया हो।
चंदन बंदन कर सृष्टि ने मनोरम विहंगम दृश्य सजाया हो।
फूली हो कचनारि प्रफुल्लित ज्यों कमल नाल शरमाई हो।
झर-झर झरने आनन्दित मन फिर अमर बेल हरसाई हो।