ग़ज़ल

 



जख़्म अब अपना पुराना हो गया।
देख उनको मुस्कुराना हो गया।।(१)


आ गये हम छोड़कर खुद को वही,
बंद अब जिस राह जाना हो गया।(२)


अब चलो छोड़ो मुझे बस हो गया,
दिल्लगी तुझसे निभाना हो गया।(३)


मैं सुनाऊँ दिल की अपने किस तरह,
तू सनम कबका बेगाना... हो गया।(४)


है श़ज़र बूढ़ा मगर उस.... छाँव में,
मुफलिसों को इक ठिकाना हो गया(५)


लगती थी चौपाल जिस पीपल तले,
काटकर सड़के बिछाना हो गया।(६)


थी ज़रा सी जिंदगी भी गाँव में,
ये शहर तो मौत जाना हो गया।(७)


प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश


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