एक कदम साहित्य की ओर


शायद प्रेम शब्द को सुन एक सुगबुगाहट सी हम अपने आस पास महसूस करने लगते हैं न जाने कितने तीर आंखो की तरकश में आ सवालिया तीर दागने लगते है पर क्यों 


 राधा कृष्ण के प्रेम की मुरली मधुर बजती है 
मीरा की वीणा  भी प्रेम रस झरती है ।
पावन बना प्रेम के इनको
हम पूजा करते हैं ।
फिर कैसे हम प्रेम को चरित्रहीन कहते हैं ।
कैसे कुछ प्रेम पावन हो जाते हैं ।
कैसे कुछ प्रेम शाश्वत नहीं कहलाते हैं ।


प्रेम 
अक्सर यही कहा जाता है प्रेम कभी सच्चा नहीं होता है , प्रेम की एक उम्र होती है प्रेम बन्धन को मानता है , प्रेम की एक मर्यादा होती है प्रेम सीमाओं में निर्धारित होता है , कुछ प्रेम मर्यादा नहीं मानते उनकी कोई सीमा रेखा नहीं होती फिर वो कैसे पूजनीय हो जाते हैं कैसे हम उनके मन्दिर बनाते हैं उनके प्रेम की महिमा गाते हैं रास लीलाओं में उनका वर्णन करते हैं , प्रेम की उपमाओं में उनको श्रृंगारित करते हैं ,
 क्यों आज प्रेम लांछित होता है , नहीं यह सिर्फ हमारी निम्न सोच है वरना  प्रेम वो जज़्बात हैं , वो एहसास है जो हमें एक ऐसी आत्मा से जोड़ता है जिससे हमारा जन्म जन्मांतर का रिश्ता होता है जो न जाने शिव तपस्या की तरह कितने ही जन्म लेकर पूरा होता है , जिंदगी में हजारों लोग मिलते हैं रिश्ते होते हैं फिर क्यों कोई एक ही ऐसा होता है जिसके लिए रूह तड़प महसूस करती है जिसको पाने से जिसके साथ होने से भी कहीं ऊपर उसको अपने अंदर जीना होता है , प्रेम बहुत पवित्र वो बन्धन है जो जिस्म से नहीं रूह से जुड़ता है जो मात्र आकर्षण नहीं उस कुरूपता से भी निखरता है जिस में रूह एक दूसरे को अपनाती है प्रेम कभी कमज़ोर नहीं होता वो कभी बाहरी आचरण से नहीं बिखरता प्रेम अडिग प्रेम धैर्य की प्रतिमूर्ति है जो जब हाथ पकड़ता है तो सांसों में चलता है , प्रेम कमियों में भी साथ नहीं छोड़ता प्रेम हमें निखारता है प्रेम हमें जीवन के प्रति सार्थक नज़रिया देता है , प्रेम हमें सफल बनाता है प्रेम अश्कों की दुनिया से निकाल फिज़ाओं सी रंगत देता है फिर प्रेम अपवित्र या किसी बन्धन में कैसे बन्ध सकता है कैसे प्रेम सीमाओं में दम तोड सकता है , प्रेम को समझो आकर्षण को नहीं 
प्रेम हर जन्म में पावन है ।


MAnNisha misha


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