बिना मुहूरत जनमैं प्राणी,
बिना मुहूरत मरि जाला।
फिर भी देखा दुनियां सारी,
शुम मुहूरत पाछे पगलाला।।
बात पते की कहला भईया,
सब तबौ मूहूरत देखवावैला।
कइसे राजा बनी बेटउवा ,
नवग्रह शांनत करवावैला।।
विथि कै लेखा मेटि सके को,
ना इतना कूबत केहु में बा।
केतनो पूजा पाठ करउबा ,
जे होनी है उ त होखत बा ।।
कहैं अनुज का लेकर अइला,
का लेकर तू जइबा बबुआ।
जनम भरे क करम कमाई,
सब लुटि जईहैं गठरी बटुवा।।
अब एकै रस्ता बा सस्ता,
जप रामनाम हर सांस करा।
खुदौ तरा औ कुल के तारा,
औ भवसागर से पार परा ।।
सुरेन्द्र दुबे
(अनुज जौनपुरी)
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