इस समय जीवन का यदि
कोई सबसे टूटा,हताश
और कमजोर सिरा है,
वह है मन।
और सबसे ज्यादा अंधेरे में
खोई हुई दिशा है
वो है विचार।
जैसे हमारे विचार होंगे,
वैसी ही हमारी फिक्वेंसी होगी।
जैसी हमारी फिक्वेंसी होगी
वैसा ही हमारा वातावरण होगा।
जैसा हमारा वातावरण होगा,
हम वैसा ही समाज बनायेगें।
हमने लहरों से तो शिकायते
करना सीख लिया है,
पर नाव को बदलना नही सीख पाएं।
आजबसे 20 बरस बाद तुम
उन दुखो से घिरे होंगे,
जिन्हें तुम आज बो रहें हो।
तुम कल दुखी नही होना चाहते,
तो इस हाहाकार को फेककर,
तुम उस किनारे की तरफ बहों
जहां सुकून है।
यही समय है, जब मनुष्य को
अपनी नाव के सुराग भर लेना चाहिए।
अपने विचारों की गठरी में
उन जरूरी दार्शनिक सवालों को,
खोज लेना चाहिए।
जो पूंजी का पहाड़ उठाने की
आपाधापी में कही दब गए।
हम कौन है,और हमारे
होने का क्या अर्थ है।
तुम वही हो,जो तुम सोचते हो,
तुम्हारा जीवन उसी रंग में रंगा है,
जैसा तुम्हारे विचारों का रंग है।