सीख

 



महकना  फूलों से  सीखो ,जो काँटों में महकते हैं
काँटों की चुभन सहकर भी जो  सुगन्ध फैलाते हैं


संयम सीखना हो तो तुम बोतल शराब से  सीखो
मय को बीच में रख कर भी कभी नहीं बहकती है


सहिष्णुता  सीखनी  है तो  दहकते रवि से सीखो
असहनीय ताप में तप कर कभी नहीं पिंघलता है


चमकना  सीखना हो  तो चमकते चाँद से सीखो
तम को तन  पर ले कर काली रात में चमकता है


समर्पण  सीखना  हो  तो  घने  बादलों से सीखो
सभी की प्यास बुझाकर जल बूँदों को तरसता है


याराना  सीखना  हो  तो श्री  कृष्ण  से  सीखिए
सुदामा की खाली झोली को खजानों से भरता है


इंतजार  सीखना  हो तो प्यासे चातक से सीखो
सुखविंद्र  प्यासा  रह कर  वर्षण  को तरसता है


सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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