मौन स्वर उत्ताल नभ से हो रहे।
वीथियों में स्मरण यव बो रहे।१।
मूर्च्छना मन प्राण में किल्लोलती।
चातकी की तान में स्वर घोलती।२।
जलद घुँघराले सुस्मित सज रहे।
नयन आतप दाह निज ही मथ रहे।३।
भित्तिचित्रों ने अकथ कल्पन गढ़ी।
अप्सरा सी हृद मुकुल कलिका मढ़ी।४।
क्षरित पीड़ा देह सर व्यापित हुई।
प्रेय ज्वल छ्लना हृदय शापित हुई।५।
मंत्रमय उच्चार कम्पन हृद जगे।
वेदना को धार तन्मय से लगे।६।
देह जग खद्योत एकाकार हो।
तन तरंगित अणु अणु साकार हो।७।
- विनय विक्रम सिंह
# मनकही