हम जब कतहु जाइ,त उहवे कुकुर पाई।
ऊ नोचे चोथे चाहे!हम उहा से हटि जाइ।।
निकली ना लाजे डरे,मन भइलि मरे मरे।
रूप कवन कहि चुप,गावँ महाला घरे घरे।।
झाँकी देखि कबो त,उ फरके से गुर्राइल।
आंख तरेरी दाँत बगारि,लगे चलि आइल।।
भीतर से रही डेराइल,ई हवे कुकुर पागल।
मांस नोच के खाला,चस्का एकरा लागल।।
खून बुन के चूस घुस,मील बाट के खाला।
हवे जीभ चटोर चोर,चाट काट के खाला।।
देखनी उहे कुकुरा,सुखल हड्डी चाटत रहे।
खरकटलो हड्डी के,चाट काट काटत रहे।।
खुबे खुश रहे ऊ,जे दिन हड्डी काटत रहे।
हड्डी से खून निकाली,जिभि से चाटत रहे।।
डेराला ना लजाला,खून पिए के धुन रहे।
निजे बंश के हड्डी,निजे मुह के खून रहे।।
दिवाकर अइसन कुकुर,रोवत माई छाती।
जाने कबले रही,ई!कुलघाती कुकुर जाति।।
दिवाकर उपाध्याय