मुझको सुर्खी गुलाब लिखते है,
उड़ती तितली का ख्वाब लिखते हैं !
रात पलकों पर जो काटी मैंने,
अश्क़ों का हर हिसाब लिखते हैं !
पी रहे जाकर रोज मैखाने में,
फिर भी आँखे शराब लिखते हैं !
आरजुयें दामन में जब मचलती हैं.,
दिल की दुनिया खराब लिखते हैं !
मिलना लकीरों का खेल है फिर भी,
अपनी किस्मत नबाब लिखते हैं..!
हर्फ़ दर हर्फ़ तेरी ही तहरीरें,
फिर भी बेवफा खिताब लिखते हैं !
मेरे इश्क़ की आजमाइश में,
अरे,वो तो पूरी किताब लिखते हैं..!
ओढ़ अहसासों की जपूँ माला,
फिर क्यूँ नीयत खराब लिखते हैं !
कैसी बेबसी है किरण उनकी
फिर भी जानू, जनाब लिखते हैं !!
किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"
9.8.2018