शिव की बारात सजी हिमवान द्वार चली-
तेरस बसन्त मास फाग अंधियारी है।
भसम मसान तन श्याम पोतें छार भरि-
कटि छाल केहरि अनंग कोटि वारी हैं।
गले मुण्डमाल रुद्राक्ष सोहें भुज पाश-
शीश जटा-जूट लट व्याल अहिधारी हैं।
दूलह सजावत निशाचर जमात रूचि-
कांट-कूश बऊर धतूर मऊर धारी हैं।
विषधर जूरा बांधें लट जटा माथ साजें-
उलटि बईठि चलें नन्दी असवारी हैं।
देव गण साथ चलें देखि मुसकाति चलें-
भूत-प्रेत गावत उछाह अति भारी हैं।
ढोल मिरदंग बाजें तुरही डमरू झांझ-
बाजे करताल जयकारि त्रिपुरारी है।
गावें नाचें चिचियाँय मुहँ सुसुकारि देत-
ब्याहन के द्वार चलें शैल सुता प्यारी हैं।
कोई हँसे रोयें कोई झूमि नाचे गावें कोई-
साथ चलें नाथ के अनाथ हितकारी हैं।
परिछन को मैना चलीं हिय हरषाई भलीं-
वर बऊराह देखि दुखी महतारी हैं।
आरती क थाल फेंकी अहिराज काल देखी-
फुफकार नाग देत नील कण्ठ धारी हैं।
अईसन बारात देखी वर बऊराह लेखि-
गौरी विवाह नाहीं भली ही कुँआरी है।
उमा पति ध्यान धरें मातु कल्यान करें-
पाणिग्रहण करने को करें तइयारी हैं।
लगन समय आई फेरा ब्रह्म मन्त्र गाई-
मुदित त्रिलोकी नाथ जग सुखकारी हैं।
शिव अड़भंगी नाथ धरें ध्यान योग साथ-
जगत क दुख काटें राकापति धारी हैं।
राकेश क कष्ट हरें मति भ्रष्ट दूरि करें-
शरण सुरक्षक त्रि शूल हिय हारी हैं।
शिव क विवाह गीत गाईं लिखीं चारु छ्न्द-
मुदित हृदय मुद मंगल हितकारी हैं।
आदि देव पुरुष कैलाश के निवासी स्वामी-
हरें दुख शिव शंभू दया दुख हारी हैं।
राकेश कुमार पांडेय
हुरमुजपुर,सादात
गाजीपुर,उत्तर प्रदेश